Sunday, July 26, 2009

This blog is dedicated to my Gurudev. I learnt a lot from him,from his life, and through his books, he is with us ,guiding us, loving us.blessing us. I will love to share his thoughts and wonderfull teachings with all of you, who are looking for the true meaning of life... peace and liberation, the ultimate aim of life. It is a spiritual journey---------
"Through spiritual practice you become aware of your self upon a level higher than the normal awareness.The normal consciousness of man is at the level of the mind , but when God has been gracious enough to bring you to a sudden awakening into a hitherto unknown level of yourself, there comes into you an awareness that you are not this physical and psychological entity alone. You find that you are in essence a spiritual being above and beyond time and space,above birth and death and above name and form."--Swami Chidananda ji .

Thursday, July 16, 2009

प्रीत की रीत

प्रीत की यह क्या रीत हुई ?
जब तुमसे परिचय भी न था
गु रु ज्ञान ,
प्रज्ञा बोध ,
शब्दों का अर्थ भी मालुम न था ,
तुम आए ,
जीवन में समाये ,
सहारा दिया ,
भाव जगाये ,
कृति में साकार बने आकर ॥
फिर जाने क्या भूल हुई ?
पुकारती हूँ
दिन और रात ,
सुबह और शाम
आते हो ,
पल को छिप जाते हो ,
आँगन बुहारती हूँ ,
दीप जलाती हूँ ,
रोती हूँ गीड़गिड़ाती हूँ,
आंसूं पोंछ देते हो ,
मुस्करा देते हो,
फिर छिप जाते हो कहीं जाकर ॥
ये जाने क्या बात हुई ?
स्वर कंठ में आते हैं ,
रुक जाते हैं ,
भावों से भरा मन ,
कहीं भटक गया है ,
मंजिल पर पहुँचने से पहले
ये कौन थक गया है ,
ये मैं नहीं ,
अवश्य कोई साया है ,
इस साए को मिटा दो ,
परदा उठा दो ,
मेरे भावों के सूत्र धार
मेरी साधना संपन्न करो आकर ॥

Saturday, July 11, 2009

स्वाद आंसुओं का

आंसुओं का अपना स्वाद
अनोखा ढंग होता है
साधक बन कर प्रभु की प्रीत के आंसूं
मुहं गले पर उत्तर कर अमृत सा स्वाद देते हैं
उनके रंग में चमक होती है -
मानो सारा आकाश नीचे
हमारे आस पास उतर आया हो ।
सकूँ ऐंसा
कि जी नहीं चाहता कि आंसू रुकें या आँख खुले ।
यही आंसू जब मन चोट
खाकर बहते हैं -
मानो ज़हर गले से उतर जाता है ,
चारों और भय सागर की लहरों का भर जाता है --
मानो इसमें डूब कर अस्तित्व मिट जाए
सारा जहाँ मानो थम जाए -
क्यों जन्म लिया
क्यों हम इस जग में आए ।
सीखना है ,हाँ सीखना ही होगा
हर आंसू का स्वरूप बदला जाए -
आंसू कैंसे भी हों
उन्हें प्रभु चरणों में गिरने दिया जाए
अपने आप चमक भर लेंगे
अमृत बन जायेंगे ॥

Tuesday, July 7, 2009

पूरण समर्पण

गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में --------
मैं नहीं मेरा कुछ भी नहीं ,
जो हो सो तुम हो ,जो है सो तेरा ,
मेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव ॥

इस निर्बल काया ने
यह उदेश्य महान बनाया
जैंसे इक चींटी ने
हिमालय की चोटी लक्ष्य बनाया
तुम बस जायो मेरे अंतस में ,सब सम्भव हो सकता है ।
मेरा यह निमंत्रण स्वीकार करो गुरुदेव ॥

भाषा और साहित्य का
मुझको है ज्ञान नहीं ,
सागर से विषय की
गहराई का अनुमान नहीं
बन जायो साहिल मेरी नैया के,सहज ही सफर कट सकता है ।
मेरा यह आमंत्रण स्वीकार करो गुरुदेव ॥

मुझ जैंसे ,मन के पंखों से
जब आकाश में उड़ते हैं
समय के आंधी तुफानो में
पिट ते हैं ,फंसते हैं ,
मेरी उड़ान के पंख बन जायो ,निराकार शिवलिंग में सिमट सकता है ।
मेरी साधना का स्वप्न स्वीकार करो गुरुदेव ॥
मेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव ॥

Wednesday, July 1, 2009

रूप धरो साकार

साधना की राह पर मैं भटका हुआ इक राही ,
तुम सहारा बनो मेरे मन मन्दिर में आकर ।

तेरी साधना में क्यों कांप रही ये दिशाएं ,
तुम शक्ति बनो मेरे हाथों में आकर ।

असंख्य दीपो से सजी मेरी पूजा की थाली ,
तुम दीप शिखा बन प्रकाश भरो आकर ।

टूटे सारे तार ,बिखेरे स्वर सितार के ,
तुम स्वर ल्र्हरी बन संगीत भरो आकर ।

शब्दों के बोझिल जाल में उलझी मेरी साधना ,
तुम भीने भाव भर भावार्थ बनो आकर ।

मन्दिर के द्वार पे बिखरे सारे मोत्ती माला के ,
तुम जाप हो मेरा ,सूत्र धार बनो आकर ।

विकारों से कितनी मैली पड़ गई मन की काया ,
तुम काटो इन अंधेरों को ,रूप धरो साकार बनो आकर ।

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