Wednesday, December 16, 2009

देर न करो

मैं रात भर दिए जलाती रही
जब तुम आयो
तो अँधेरा न हो आँगन में ।

पंखुडियां गुलाब की बिछाती रही
जब तुंम आयो
सुगंध भरी हो मन पावन में ।

सितार के सुर मिलाती रही
तुम्हारा स्वागत हो
संगीत की सुमधुर तान से ।

सेज सितारों से सजाती रही
सुंदर बिछोने लगाये
कोई कमी न हो सम्मान में ।

गीत प्रीत के गुनगुनाती रही
समर्पण से भरपूर
स्नेह छलकता हो कानन में ।

मेरे सर्वस्व क्यों देर यों करी
अब आ भी जायो
पग धरो मेरे मन प्रांगन में ॥

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