Tuesday, November 9, 2010

दिए जलते रहें

दिवाली की सब को मंगलकामनाएं ,ढेर सारी शुभकामनायें -----
अध्यात्मिक जीवन -एक ज्योतिपथ है
अंधकार से प्रकाश की ओर
अज्ञान से ज्ञान की ओर
प्रेरित करता ,लक्ष्य की ओर अग्रसर होता
ज्योति पथ -------
जल्दी फिर मिलते हैं इस यात्रा पर ॥

Tuesday, October 26, 2010

एक यात्रा ----5


मगर
गुरुदेव इस त्राहि त्राहि करते जगत में परम शांति कहाँ ,आनंद कहाँ ------?
यह सच है कि बाहरी जगत का प्रभाव घना ,
पर इसका अर्थ क्या ?
बहार की यह दुनिया ,जैसा चाहे ,वैसा हमें नचाये
जब चाहे रुला दे या फिर चाहे तो हंसा दे
हम क्या वातावरण की
प्रतिक्रिया मात्र बन कर रह जाएँ ?
हमारा अपना भी तो ,एक व्यक्तित्व है ,अस्तित्व भी ।
जन्म से लेकर आये हैं ,एक स्वभाव ,एक सामर्थ्य
जो इस बाहरी शत्रु से लड़ सकता है ।
वातावरण से हो पूर्णतः अप्रभावित
बना इसे अपना दास ,जो चाहे जैसा चाहे ,
अपने मन की कर सकता है ।
प्रकृति का एक रहस्य जान लो ,
हमारा मूल स्वभाव दिव्य है ।
यह अंतर्मुखी मन -सतचित आनंद आत्मन है ।
सत्य की यह पहचान कठिन ,मगर सरल भी ,
क्यूँ कि यह हमारी मूल सहज अवस्था है ।
जन्म से ही -अशुद्ध धारना के आवरण में आ जाते ,
इस से मुक्त हो सकते हैं -नहीं हो पाता इसका ज्ञान भी ।
पर यह कठिन नहीं -समय लग सकता है ,लगता रहे ,
एक बार सही सोचने की आदत ,
और गलत को नकारने का प्रयत्न शुरू हुआ
कि मुक्त होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है ।
यह विषय वातावरण का नहीं ,
शहर के लोगों ,और घटनायों का नहीं
वह तुम्हें कितना प्रभावित करें
यह समस्या ,यह विषय तुम्हारा निजी है
कि तुम्हें उनसे प्रभावित होना है कि नहीं ।
जिस मात्र में तुम उन्हें महत्त्व दोगे ,
उतनी ही मात्रा तुम्हें विक्षिप्त अथवा प्रसन्न करेगी ।
मन को अंतर्मुखी करो
शीघ्र ही बाहर की अवस्थाएं शक्ति हीन होंगी
वातावरण ,घटनाएँ या वस्तुएं
जीवन का एक लम्बा सपना --चिर परिवर्तनशील
इन को महत्त्व देना एक भूल --
इनसे निर्देशित होना एक दुर्बलता ।
सबल हो ,निर्देश दो ,इनको
फिर शांत स्थिर अवस्था पा जायोगे
और पूर्ण आनंद भी ॥

Tuesday, October 19, 2010

एक यात्रा --४------आगे

यह जीवन
जन्म से मृत्यु की नहीं ,
जन्म से मोक्ष तक की यात्रा है ।
सोच मानव क्या तू जग में आया ,
थोडा हंसने या फिर रोने को ?
दुःख सुख में लिप्त हो
फिर मर जाने को ?
तू आया नहीं केवल मरने को ,
मानव तन अमरत्व पाने का माध्यम है ।
संतों ने किया आह्वान ,
जाग जाग मानव
तूने पाया जीवन का वरदान ,
अपने चिर लक्ष को पहचान ,
अमरत्व फैलाये बाहें
तेरी प्रतीक्षा में हैं
जीवन तो इसे पा लेने की साधना है ।
यह संतों की वाणी
उनका आत्मानुभव ,अपरोक्षानुभूति भी ,
जीवन संघर्ष नहीं ,परम शांति भी ,
असंतोष ही नहीं ,नित्य तृप्ति भी ,
दुःख ही नहीं ,आनंद भी
जीवन का लक्ष्य परम शांति को प् जाना हैं ॥

Sunday, October 17, 2010

एक यात्रा ----४
यह यात्रा --मन का मंथन है ,प्रश्न उठते हैं ,उनके उत्तर ढूद्ती हूँ --गुरु सानिध्य में ,उनकी पुस्तकें ही उनका सानिध्य। प्रश्न उठा ----
यह जीवन है क्या ?
इसका पृथ्वी पर होना ,रहना ,कुछ करना
और फिर मिट जाना ,आखिर किस लिए
जीवन को जीने का कोई लक्ष्य तो होगा ।
तुम और मैं --हैं कौन ?
कहाँ से आये और क्यूँ आये --?
मिटटी से आये --मिटटी में मिल जाने को ?
क्या जीवन मृत्यु तक की निरर्थक यात्रा ?
जीवन को पाने का कोई अर्थ तो होगा --
मिटटी से आकर मिटटी में मिलता कौन --
वह तो यह नश्वर काया ।
फिर वह क्या जो मिट ता नहीं
शाश्वत है ---शरीर मरता है ,वह मरता नहीं ।
इस शाश्वत सत्य को खोजना तो होगा ।

Monday, September 27, 2010

एक यात्रा -----3

गुरुदेव ने गुरुमहाराज की जनम तिथि को कई जगह बहुत भाव पूर्ण वर्णित किया है । आइये कुछ भाव आत्मसात करें ----गुरु की जनम तिथि एक स्वर्ण दिवस
प्रतेयक साधक के लिए एक वरदान
इसकी अभिन्नता का
सृष्टि में विशिष्ट स्थान
विशेषता इसकी समझो
भक्त भाव से फैला अंजलि स्वीकारो
पाया तुमने अमूल्य दान ।
इस दिन का हर पल हर घडी
दिव्य भावनायों में
उच्च विचारों में जीयो ।
सूर्यास्त तक नाप लो नई उचाइयां
मानव --अस्तित्व के उदेश्य की करो पहचान ।
समृद्ध है यह दिवस
तुम समृद्ध करो जीवन को
यह आदर्शों से पूर्ण है ,संपन्न है ,
उतारो इन्हें अपने प्रति दिन में
बनायो जीवन एक वरदान ।
लक्ष्य हो ,
लक्ष्य पा लेने तक की निरंतर उड़ान ॥

Saturday, September 25, 2010

एक यात्रा -----2

इस पुरातन सत्ता
और आधुनिक जीव की
बन कड़ी इनके बीच की
हमारे गुरु महाराज
श्री स्वामी शिवानन्द जी आये
मानव के दिव्य सौभाग्य का
अस्तित्व समझाने आये
कैसे ज्ञान बोध को पाए
कैंसे पाए दिव्य स्थान को
जो कर दुखों से दूर हमें
देता सुख सम्मान को
यह दिव्यता हमारा मूल स्वभाव है।
ऐसे ज्योति पुंज मार्ग दर्शक को हमारा प्रणाम है ॥
वह मानव के
अन्तः करण की आवाज़ थे
सन्देश थे ,सन्देश वाहक भी ,
मानव को पुकारा
प्रेरणा दी
जागृत किया
सुर भी दिया और साज़ भी
स्वर दिया और संगीत भी
वह माध्यम थे ,शक्ति भी
उस ब्र्हात्मा और आत्मा के बीच की
उनकी अध्यात्मिक उपस्थिति
आज भी हमारे पथ की प्रेरणा है प्रकाश है ।
ऐसे माननीय प्रेरणा दायक को हमारा प्रणाम है ॥

Friday, September 24, 2010

एक यात्रा --------

आज गुरुदेव का जनम दिन है । हर शिष्य इस दिन अवश्य गुरु को श्रधांजलि देता है ,वह कभी मौन होती है और कभी मुखर ,कभी वह नतमस्तक प्रार्थना होती है ,कभी उनके चरणों में कुछ भावों का समर्पण । इन सब के पीछे एक ही उद्देश्य होता है कि गुरु की शिक्षायों को जीवन में उतारनें का एक सतत प्रयतन--वही सच्ची श्रधांजलि होगी ।
गुरुदेव की अधिकतर पुस्तकें उनके प्रातः ध्यान में दिए गएh भाष्यों के संकलन हैं ,उनकी किसी पुस्तक को पढने बैठो तो अनुभव होता है ,आप आश्रम में उनके चरणों में बैठे उनको सुन रहे हो --उनके इस सानिध्य का अनुभव अनुपम है। उनकी शिक्षायों का एक चिंतन ,एक मनन करूँ ,एक माला गूंत्हू .समझूँ ॥ साधना -यात्रा की यह प्रेरणा भी तो गुरु की है। झोली फूलों से भर लूँ ,और बढ़ती जाऊं ,यह प्रेरणा क्या आकार लेगी ,मैं नहीं जानती । यह प्रयास एक यात्रा है,आप भी मेरे साथ -------

गुरुदेव के सभी भाष्य प्रभु और गुरु की वंदना से शुरू होते हैं -----

जब यह सृष्टि नहीं थी ,

धरती नहीं ,

कोई धरम नहीं था

कोई शास्त्र नहीं थे

हुआ कोई अवतार नहीं था

कोई कांड नहीं

कोई करम नहीं था

तब भी यह ब्रहम सत्ता थी
सर्व व्यापक दिव्यता थी

जो समय और स्थान से परे

अमर और अनंत है

अनंत कोटि ब्रह्मांडों का मूल स्त्रोत है ,
ऐसी अमर अनंत ब्रहम सत्ता को हमारा प्रणाम है ॥ -----------------क्रमशः

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