Friday, September 4, 2009

एक चिंतन

गुरु शरण में रहकर ,साधक का
हो जाए अगर मन उदास
तो जान लो साधना में हुई कमीं कहीं ।

सीधी राह पर चलते चलते
डगमगाएं पग ,गति में आए अवधान
तो समझ लो पग में चुभा कोई शूल कहीं ।

दीप जलाया मन्दिर में भक्त नें
अगर हुआ अंधेरों का एहसास
तो मान लो आराधना में हुई चूक कहीं ।

जप करते करते मन भटकता हो
किसी शोर से भरा हो पूरा आसपास
तो जान लो प्रार्थना की यह रीत नहीं ।

ध्यान में बैठा हो जब मुमुक्षु
एकाकी पण का होने लगे आभास
तो समझ लो उपासना में हुई भूल कहीं ।

बुद्धि स्वाध्याय का मनन करती हो
मन में उठते हो हजारों सवाल
तो मान लो प्रकाश होने में देर कहीं ।

कभी मन एकाएक प्रसन्न हो जाए
चारों और फूलों की महक आए ख़ास
तो पहचान लो प्रभु तेरे एकदम पास हैं यहीं ॥

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