Wednesday, July 1, 2009

रूप धरो साकार

साधना की राह पर मैं भटका हुआ इक राही ,
तुम सहारा बनो मेरे मन मन्दिर में आकर ।

तेरी साधना में क्यों कांप रही ये दिशाएं ,
तुम शक्ति बनो मेरे हाथों में आकर ।

असंख्य दीपो से सजी मेरी पूजा की थाली ,
तुम दीप शिखा बन प्रकाश भरो आकर ।

टूटे सारे तार ,बिखेरे स्वर सितार के ,
तुम स्वर ल्र्हरी बन संगीत भरो आकर ।

शब्दों के बोझिल जाल में उलझी मेरी साधना ,
तुम भीने भाव भर भावार्थ बनो आकर ।

मन्दिर के द्वार पे बिखरे सारे मोत्ती माला के ,
तुम जाप हो मेरा ,सूत्र धार बनो आकर ।

विकारों से कितनी मैली पड़ गई मन की काया ,
तुम काटो इन अंधेरों को ,रूप धरो साकार बनो आकर ।

1 comment:

  1. साधना की राह पर मैं भटका हुआ इक राही ,
    तुम सहारा बनो मेरे मन मन्दिर में आकर

    undar praarthna prabhoo charnon mein ...............

    ReplyDelete

Hit Counter

Web Page Counter
Latitude E6400 E6500