आंसुओं का अपना स्वाद
अनोखा ढंग होता है
साधक बन कर प्रभु की प्रीत के आंसूं
मुहं गले पर उत्तर कर अमृत सा स्वाद देते हैं
उनके रंग में चमक होती है -
मानो सारा आकाश नीचे
हमारे आस पास उतर आया हो ।
सकूँ ऐंसा
कि जी नहीं चाहता कि आंसू रुकें या आँख खुले ।
यही आंसू जब मन चोट
खाकर बहते हैं -
मानो ज़हर गले से उतर जाता है ,
चारों और भय सागर की लहरों का भर जाता है --
मानो इसमें डूब कर अस्तित्व मिट जाए
सारा जहाँ मानो थम जाए -
क्यों जन्म लिया
क्यों हम इस जग में आए ।
सीखना है ,हाँ सीखना ही होगा
हर आंसू का स्वरूप बदला जाए -
आंसू कैंसे भी हों
उन्हें प्रभु चरणों में गिरने दिया जाए
अपने आप चमक भर लेंगे
अमृत बन जायेंगे ॥
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yah post achchi likhai hai.... shukria......
ReplyDeleteआंसू कैंसे भी हों
ReplyDeleteउन्हें प्रभु चरणों में गिरने दिया जाए
अपने आप चमक भर लेंगे
अमृत बन जायेंगे
Saty likha hai...... ansoo bhi to prem ki jubaan hote hain...
आंसुओं का स्वाद अनोखा होता है, अति सुन्दर,
ReplyDelete"दुख में झरते,सुख में झरते,
अपनों के कष्टों में झरते;
मन-वीणा को मुखरित करते,
प्रतिपल नई कहानी है।
कोई कहता आंसू हैं ये,
कोई कहता पानी है॥"