गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में --------
मैं नहीं मेरा कुछ भी नहीं ,
जो हो सो तुम हो ,जो है सो तेरा ,
मेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव ॥
इस निर्बल काया ने
यह उदेश्य महान बनाया
जैंसे इक चींटी ने
हिमालय की चोटी लक्ष्य बनाया
तुम बस जायो मेरे अंतस में ,सब सम्भव हो सकता है ।
मेरा यह निमंत्रण स्वीकार करो गुरुदेव ॥
भाषा और साहित्य का
मुझको है ज्ञान नहीं ,
सागर से विषय की
गहराई का अनुमान नहीं
बन जायो साहिल मेरी नैया के,सहज ही सफर कट सकता है ।
मेरा यह आमंत्रण स्वीकार करो गुरुदेव ॥
मुझ जैंसे ,मन के पंखों से
जब आकाश में उड़ते हैं
समय के आंधी तुफानो में
पिट ते हैं ,फंसते हैं ,
मेरी उड़ान के पंख बन जायो ,निराकार शिवलिंग में सिमट सकता है ।
मेरी साधना का स्वप्न स्वीकार करो गुरुदेव ॥
मेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मेरी साधना का स्वप्न स्वीकार करो गुरुदेव
ReplyDeleteमेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव
नम्र निवेदन है मेरा भी गुरु चरणों में ........
मेरी साधना का स्वप्न स्वीकार करो गुरुदेव
ReplyDeleteमेरा यह पूर्ण समर्पण स्वीकार करो गुरुदेव
नम्र निवेदन है मेरा भी गुरु चरणों में,मेरा यह निमंत्रण स्वीकार करो गुरुदेव .......
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....