आज गुरुदेव का जनम दिन है । हर शिष्य इस दिन अवश्य गुरु को श्रधांजलि देता है ,वह कभी मौन होती है और कभी मुखर ,कभी वह नतमस्तक प्रार्थना होती है ,कभी उनके चरणों में कुछ भावों का समर्पण । इन सब के पीछे एक ही उद्देश्य होता है कि गुरु की शिक्षायों को जीवन में उतारनें का एक सतत प्रयतन--वही सच्ची श्रधांजलि होगी ।
गुरुदेव की अधिकतर पुस्तकें उनके प्रातः ध्यान में दिए गएh भाष्यों के संकलन हैं ,उनकी किसी पुस्तक को पढने बैठो तो अनुभव होता है ,आप आश्रम में उनके चरणों में बैठे उनको सुन रहे हो --उनके इस सानिध्य का अनुभव अनुपम है। उनकी शिक्षायों का एक चिंतन ,एक मनन करूँ ,एक माला गूंत्हू .समझूँ ॥ साधना -यात्रा की यह प्रेरणा भी तो गुरु की है। झोली फूलों से भर लूँ ,और बढ़ती जाऊं ,यह प्रेरणा क्या आकार लेगी ,मैं नहीं जानती । यह प्रयास एक यात्रा है,आप भी मेरे साथ -------
गुरुदेव के सभी भाष्य प्रभु और गुरु की वंदना से शुरू होते हैं -----
जब यह सृष्टि नहीं थी ,
धरती नहीं ,
कोई धरम नहीं था
कोई शास्त्र नहीं थे
हुआ कोई अवतार नहीं था
कोई कांड नहीं
कोई करम नहीं था
तब भी यह ब्रहम सत्ता थी
सर्व व्यापक दिव्यता थी
जो समय और स्थान से परे
अमर और अनंत है
अनंत कोटि ब्रह्मांडों का मूल स्त्रोत है ,
ऐसी अमर अनंत ब्रहम सत्ता को हमारा प्रणाम है ॥ -----------------क्रमशः
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ॐ
ReplyDeleteआदरणीया डॉ.प्रेम
नमस्कार !
आपकी गुरु भक्ति प्रशंसनीय है ।
मेरी ओर से भी आपके गुरु के चरणों में श्रद्धा पूर्वक प्रणाम !
चादर रंगदे रंग में , सुगुणी गुरु रंगरेज !
ज्यूं ज्यूं प्रक्षालन करे , बढ़े शिष्य का तेज !!
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
गुरुदेव को नमन!
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