Wednesday, December 16, 2009

देर न करो

मैं रात भर दिए जलाती रही
जब तुम आयो
तो अँधेरा न हो आँगन में ।

पंखुडियां गुलाब की बिछाती रही
जब तुंम आयो
सुगंध भरी हो मन पावन में ।

सितार के सुर मिलाती रही
तुम्हारा स्वागत हो
संगीत की सुमधुर तान से ।

सेज सितारों से सजाती रही
सुंदर बिछोने लगाये
कोई कमी न हो सम्मान में ।

गीत प्रीत के गुनगुनाती रही
समर्पण से भरपूर
स्नेह छलकता हो कानन में ।

मेरे सर्वस्व क्यों देर यों करी
अब आ भी जायो
पग धरो मेरे मन प्रांगन में ॥

7 comments:

  1. प्रेम में समर्पण की भावना ही जीवित राखित है प्रेम को ..........
    प्रतीक्षा में बिताए लम्हों को सुंदर शब्दों में बाँधा है आपने .... सुंदर रचना .........

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  2. प्यार और मनुहार का अद्भुत संयोजन

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  3. परमात्‍मा ने.... देर ना की होगी
    मुझमें ही कुछ और कमी रह गई होगी

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  4. बहुत भावपूर्ण रचना...मन मोह लिया इस रचना ने...वाह.
    और हाँ आपको भी देर से ही सही शादी की वर्षगाँठ की ढेरों बधईयाँ...मुझे अभी मालूम पड़ा की आपकी शादी भी तेरह दिसंबर को हुई थी...गज़ब का संजोग...
    नीरज

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  5. बहुत अच्छी रचना
    बहुत -२ बधाइयाँ

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  6. गीत प्रीत के गुनगुनाती रही
    समर्पण से भरपूर
    स्नेह छलकता हो कानन में ।

    मेरे सर्वस्व क्यों देर यों करी
    अब आ भी जायो
    पग धरो मेरे मन प्रांगन में ॥

    पहली बार ब्लॉग पर आया .............सच, कविता दिल को छू गयी...!

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  7. जब पग पड़ेंगे गुरू के तो अपने आप उजाला हो जाएगा।
    हम अपनी भक्ति में लाख प्रयास करें...

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