साधक की साधना क्या है
जीवन के पथरीले रास्ते
pआर किया तो कुछ पाया
और रुक गए तो मात खाई ।
राह के इन काटों से
घबरा जाती हूँ ,उलझ जाती हूँ
गिरती हूँ ,उठती हूँ
नहीं जानती कहाँ तक चल आई ।
थकने की इजाज़त नहीं
मगर जाने क्यूँ थक जाती हूँ
अपने आसुयों से पूछती हूँ
क्या जो पाया ,कहीं पीछे छोड़ आई
कैसे तो मान अपमान से
लाभ हानि से ऊपर उठू
कर्मों का यह सारा जाल
करूँ तो कैसें करूँ इसकी कटाई
एक ही संतोष है
संबल भी है मेरा
कीतेरी शरण में हूँ
उठा लोगे अगर मैं ख़ुद न उठ पाई ॥
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एक ही संतोष है
ReplyDeleteसंबल भी है मेरा
कीतेरी शरण में हूँ
उठा लोगे अगर मैं ख़ुद न उठ पाई ॥
सुंदर
समर्पण का भाव है तो मुक्ति है ।
SACH KAHA JO SAMPOORN ROOP SE SAMARPIT HAI ..... VO HI USKE KAREEB HAI ...... AAPKI SAADHNA MEIN SHAKTI HAI...
ReplyDeleteकैसे तो मान अपमान से
ReplyDeleteलाभ हानि से ऊपर उठू
कर्मों का यह सारा जाल
करूँ तो कैसें करूँ इसकी कटाई
एक ही संतोष है
संबल भी है मेरा
कीतेरी शरण में हूँ
उठा लोगे अगर मैं ख़ुद न उठ पाई ॥
यही तो समर्पण का भावः या कहें की वास्तविक श्रद्धा है.
उपरोक्त पंक्तियों हेतु हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com