गुरुदेव ने गुरुमहाराज की जनम तिथि को कई जगह बहुत भाव पूर्ण वर्णित किया है । आइये कुछ भाव आत्मसात करें ----गुरु की जनम तिथि एक स्वर्ण दिवस
प्रतेयक साधक के लिए एक वरदान
इसकी अभिन्नता का
सृष्टि में विशिष्ट स्थान
विशेषता इसकी समझो
भक्त भाव से फैला अंजलि स्वीकारो
पाया तुमने अमूल्य दान ।
इस दिन का हर पल हर घडी
दिव्य भावनायों में
उच्च विचारों में जीयो ।
सूर्यास्त तक नाप लो नई उचाइयां
मानव --अस्तित्व के उदेश्य की करो पहचान ।
समृद्ध है यह दिवस
तुम समृद्ध करो जीवन को
यह आदर्शों से पूर्ण है ,संपन्न है ,
उतारो इन्हें अपने प्रति दिन में
बनायो जीवन एक वरदान ।
लक्ष्य हो ,
लक्ष्य पा लेने तक की निरंतर उड़ान ॥
Monday, September 27, 2010
Saturday, September 25, 2010
एक यात्रा -----2
इस पुरातन सत्ता
और आधुनिक जीव की
बन कड़ी इनके बीच की
हमारे गुरु महाराज
श्री स्वामी शिवानन्द जी आये
मानव के दिव्य सौभाग्य का
अस्तित्व समझाने आये
कैसे ज्ञान बोध को पाए
कैंसे पाए दिव्य स्थान को
जो कर दुखों से दूर हमें
देता सुख सम्मान को
यह दिव्यता हमारा मूल स्वभाव है।
ऐसे ज्योति पुंज मार्ग दर्शक को हमारा प्रणाम है ॥
वह मानव के
अन्तः करण की आवाज़ थे
सन्देश थे ,सन्देश वाहक भी ,
मानव को पुकारा
प्रेरणा दी
जागृत किया
सुर भी दिया और साज़ भी
स्वर दिया और संगीत भी
वह माध्यम थे ,शक्ति भी
उस ब्र्हात्मा और आत्मा के बीच की
उनकी अध्यात्मिक उपस्थिति
आज भी हमारे पथ की प्रेरणा है प्रकाश है ।
ऐसे माननीय प्रेरणा दायक को हमारा प्रणाम है ॥
और आधुनिक जीव की
बन कड़ी इनके बीच की
हमारे गुरु महाराज
श्री स्वामी शिवानन्द जी आये
मानव के दिव्य सौभाग्य का
अस्तित्व समझाने आये
कैसे ज्ञान बोध को पाए
कैंसे पाए दिव्य स्थान को
जो कर दुखों से दूर हमें
देता सुख सम्मान को
यह दिव्यता हमारा मूल स्वभाव है।
ऐसे ज्योति पुंज मार्ग दर्शक को हमारा प्रणाम है ॥
वह मानव के
अन्तः करण की आवाज़ थे
सन्देश थे ,सन्देश वाहक भी ,
मानव को पुकारा
प्रेरणा दी
जागृत किया
सुर भी दिया और साज़ भी
स्वर दिया और संगीत भी
वह माध्यम थे ,शक्ति भी
उस ब्र्हात्मा और आत्मा के बीच की
उनकी अध्यात्मिक उपस्थिति
आज भी हमारे पथ की प्रेरणा है प्रकाश है ।
ऐसे माननीय प्रेरणा दायक को हमारा प्रणाम है ॥
Friday, September 24, 2010
एक यात्रा --------
आज गुरुदेव का जनम दिन है । हर शिष्य इस दिन अवश्य गुरु को श्रधांजलि देता है ,वह कभी मौन होती है और कभी मुखर ,कभी वह नतमस्तक प्रार्थना होती है ,कभी उनके चरणों में कुछ भावों का समर्पण । इन सब के पीछे एक ही उद्देश्य होता है कि गुरु की शिक्षायों को जीवन में उतारनें का एक सतत प्रयतन--वही सच्ची श्रधांजलि होगी ।
गुरुदेव की अधिकतर पुस्तकें उनके प्रातः ध्यान में दिए गएh भाष्यों के संकलन हैं ,उनकी किसी पुस्तक को पढने बैठो तो अनुभव होता है ,आप आश्रम में उनके चरणों में बैठे उनको सुन रहे हो --उनके इस सानिध्य का अनुभव अनुपम है। उनकी शिक्षायों का एक चिंतन ,एक मनन करूँ ,एक माला गूंत्हू .समझूँ ॥ साधना -यात्रा की यह प्रेरणा भी तो गुरु की है। झोली फूलों से भर लूँ ,और बढ़ती जाऊं ,यह प्रेरणा क्या आकार लेगी ,मैं नहीं जानती । यह प्रयास एक यात्रा है,आप भी मेरे साथ -------
गुरुदेव के सभी भाष्य प्रभु और गुरु की वंदना से शुरू होते हैं -----
जब यह सृष्टि नहीं थी ,
धरती नहीं ,
कोई धरम नहीं था
कोई शास्त्र नहीं थे
हुआ कोई अवतार नहीं था
कोई कांड नहीं
कोई करम नहीं था
तब भी यह ब्रहम सत्ता थी
सर्व व्यापक दिव्यता थी
जो समय और स्थान से परे
अमर और अनंत है
अनंत कोटि ब्रह्मांडों का मूल स्त्रोत है ,
ऐसी अमर अनंत ब्रहम सत्ता को हमारा प्रणाम है ॥ -----------------क्रमशः
गुरुदेव की अधिकतर पुस्तकें उनके प्रातः ध्यान में दिए गएh भाष्यों के संकलन हैं ,उनकी किसी पुस्तक को पढने बैठो तो अनुभव होता है ,आप आश्रम में उनके चरणों में बैठे उनको सुन रहे हो --उनके इस सानिध्य का अनुभव अनुपम है। उनकी शिक्षायों का एक चिंतन ,एक मनन करूँ ,एक माला गूंत्हू .समझूँ ॥ साधना -यात्रा की यह प्रेरणा भी तो गुरु की है। झोली फूलों से भर लूँ ,और बढ़ती जाऊं ,यह प्रेरणा क्या आकार लेगी ,मैं नहीं जानती । यह प्रयास एक यात्रा है,आप भी मेरे साथ -------
गुरुदेव के सभी भाष्य प्रभु और गुरु की वंदना से शुरू होते हैं -----
जब यह सृष्टि नहीं थी ,
धरती नहीं ,
कोई धरम नहीं था
कोई शास्त्र नहीं थे
हुआ कोई अवतार नहीं था
कोई कांड नहीं
कोई करम नहीं था
तब भी यह ब्रहम सत्ता थी
सर्व व्यापक दिव्यता थी
जो समय और स्थान से परे
अमर और अनंत है
अनंत कोटि ब्रह्मांडों का मूल स्त्रोत है ,
ऐसी अमर अनंत ब्रहम सत्ता को हमारा प्रणाम है ॥ -----------------क्रमशः
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