मैं रात भर दिए जलाती रही
जब तुम आयो
तो अँधेरा न हो आँगन में ।
पंखुडियां गुलाब की बिछाती रही
जब तुंम आयो
सुगंध भरी हो मन पावन में । 
सितार के सुर मिलाती रही
तुम्हारा  स्वागत हो
संगीत की सुमधुर तान से ।
सेज सितारों से सजाती रही
सुंदर बिछोने लगाये
कोई कमी न हो सम्मान में ।
गीत प्रीत के गुनगुनाती  रही
समर्पण से भरपूर   
स्नेह छलकता हो कानन में ।
मेरे सर्वस्व क्यों देर यों करी
अब आ भी जायो  
पग धरो मेरे मन प्रांगन में ॥
Wednesday, December 16, 2009
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